त्रिवेन्द्र सरकार की Zero Tolerance की चाल हुई जाम!
Zero Tolerance देहरादून । उत्तराखण्ड में सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपना एक वर्ष का कार्यकाल तो पूरा कर लिया है, लेकिन उनके इस कार्यकाल को लेकर राज्य के अन्दर संतोषजनक माहौल नहीं है। चाहे वह प्रदेश के विकास की चाल हो, जनता की समस्याएं हों, भ्रष्टाचार को मिटाने अथवा उस पर लगाम कसने की बात हो, बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने हों या फिर राज्य की नौकरशाही की मनमानी पर लगाम ही कसने की बात ही क्यों न हो, ये सभी राज्य हित में बुनियादी मामले हैं।
इन बुनियादी मामलों से ही राज्य आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सुदृढ़ बनता है, परन्तु इन सभी बिन्दुओं पर सरकार का ध्यान शायद गंभीर ही नहीं रहा। खासतौर से राज्य में व्याप्त चले आ रहे भ्रष्टाचार पर त्रिवेन्द्र सरकार की जीरो टाॅलरेंस (Zero Tolerance) की नीति उनके एक वर्ष के कार्यकाल में अपेक्षा के अनुरूप सही दिशा में नहीं रही। देखा व समझा गया है कि राज्य में भ्रष्टाचार को मिटाने की दिशा में टीएसआर सरकार की जीरो टाॅलरेंस की चाल एक वर्ष में सफल नहीं हो पायी है। एक वर्ष व करीब एक पखवाड़े के अपने इस कार्यकाल में रावत सरकार का ध्यान देखा जाए तो माहौल समझने में ही लगा है।
अफसरों की मनमानी पर भी लगाम नहीं लगा पायी
जनता को सुशासन राज देने का वायदा करने वाली राज्य की भाजपाई त्रिवेन्द्र सरकार सूबे के आला अफसरों की मनमानी पर भी लगाम नहीं लगा पायी है। राज्य की विधानसभा में रावत सरकार ने दो बजट पेश करके उनको पारित तो कराया, लेकिन सरकार के ये दोनों ही बजट जनता को खुशी नहीं दे पाये है। सरकार के राज्य में कदम रखते ही अथवा सत्ता संभालते ही राशन की चीनी का कोटा सूबे की जनता से छीन लिया गया था।
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यही नहीं रावत सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल पर जनता की ओर से उंगली इसलिए भी उठ रही है क्योंकि महंगाई ने उनकी कमर तोड़ने में कोई कमी नहीं छोड़ी और यहां तक कि कहीं न कहीं जीएसटी की मार भी करीब-करीब सभी वर्ग समाज के लोगों पर भारी भरकम रूप में पड़ती आ रही है। भ्रष्टाचार को लेकर रावत सरकार के कामकाज पर कुछ सरसरी नजर डाली जाए तो सीएम का इस मामले को लेकर कई विभागों में असर बेअसर ही रहा है।
लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, उर्जा निगम व अन्य कुछ और महकमों पर भ्रष्टाचार छाया रहा। इसी के चलते अनेक अधिकारी रिश्वत लेने के आरोप में हवालात में भी पहुंचाए गये। बावजूद इसके महकमें भ्रष्टाचार की गिरफत में नजर आये हैं। कांग्रेस ने भी राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर कई बार कटघरे में खड़ा किया। ऐसे में सूबे की त्रिवेन्द्र रावत की सरकार भ्रष्टाचार को लेकर कोई खास अंक एक वर्ष के अपने कार्यकाल के दौरान जनता के दरबार में हासिल नहीं कर पायी और उसकी जीरो टाॅलरेंस की चाल आज जाम नजर आ रही है।